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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

4 Solved Questions with Answers
  • 2024

    वैश्विक व्यापार और ऊर्जा प्रवाह पर ध्यान केंद्रित करते हुए भारत के लिये मालदीव के भू-राजनीतिक तथा भू-रणनीतिक महत्त्व पर चर्चा कीजिये। आगे यह भी चर्चा करें कि यह संबंध अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धा के बीच भारत की समुद्री सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता को कैसे प्रभावित करता है? (उत्तर 250 शब्दों में दीजिये)

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • मालदीव की रणनीतिक परिस्थिति को संक्षेप में लिखिये।
    • मालदीव का भू-राजनीतिक और भू-रणनीतिक महत्त्व वैश्विक व्यापार एवं ऊर्जा प्रवाह को किस प्रकार प्रभावित करता है। चर्चा कीजिये।
    • चीन जैसे देश भारत-मालदीव संबंधों को कैसे प्रभावित करते हैं। विवेचन कीजिये।

    परिचय:

    मालदीव- जो भारत की नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी का एक महत्त्वपूर्ण भाग है- हिंद महासागर में महत्त्वपूर्ण समुद्री मार्गों पर रणनीतिक रूप से स्थित है, जो मालदीव के भू-राजनीतिक और भू-रणनीतिक महत्त्व को उसके भौतिक आकार से कहीं अधिक है।

    मुख्य भाग: 

    मालदीव का भू-राजनीतिक और भू-रणनीतिक महत्त्व:

    • संचार हेतु समुद्री मार्ग (SLOC): मालदीव के दक्षिणी और उत्तरी छोर पर दो महत्त्वपूर्ण SLOC हैं, जो अदन की खाड़ी, होर्मुज की खाड़ी तथा मलक्का जलडमरूमध्य के बीच समुद्री व्यापार के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
      • भारत का 50% बाह्य व्यापार तथा 80% ऊर्जा आयात अरब सागर में स्थित इन SLOC से होकर गुज़रता है।
    • हिंद महासागर भारत का पिछला भाग: मालदीव की रणनीतिक स्थिति, सहयोगात्मक रक्षा पहलों तथा समुद्री निगरानी और मानवीय सहायता में संयुक्त प्रयासों के कारण हिंद महासागर में शुद्ध सुरक्षा प्रदाता के रूप में भारत की भूमिका के लिये महत्त्वपूर्ण है।

    भारत-मालदीव संबंधों में परिवर्तन का प्रभाव: 

    हाल के वर्षों में भारत-मालदीव संबंधों में गिरावट देखी गई है:

    • सामरिक गतिशीलता: मालदीव के साथ भारत की सीमित भागीदारी ने BRI निवेश के माध्यम से चीन के बढ़ते प्रभाव को सक्षम किया है, जिससे प्रमुख समुद्री मार्गों पर भारत के नियंत्रण और इसकी समुद्री सुरक्षा को खतरा उत्पन्न हो गया है।
    • आर्थिक प्रतिस्पर्द्धा: मालदीव में भारत के तुलनात्मक रूप से कम निवेश के कारण, चीन अपनी चेकबुक डिप्लोमेसी के साथ एक प्रमुख आर्थिक अभिकर्त्ता के रूप में उभरा है, जो इस क्षेत्र में प्राथमिक भागीदार के रूप में भारत की दीर्घकालिक स्थिति को सीधे चुनौती दे रहा है।
    • कूटनीतिक तनाव: मालदीव की संतुलन रणनीति, जिसे भारत के 'बिग ब्रदर सिंड्रोम' के रूप में माना जाता है, भारत के कूटनीतिक प्रयासों को जटिल बनाती है और हिंद महासागर में उसके प्रभाव को कमज़ोर करती है।
    • समुद्री सुरक्षा: मालदीव और श्रीलंका में नई डॉकिंग सुविधाओं के साथ-साथ चीन की पनडुब्बी तथा विध्वंसक तैनाती, भारत के समुद्री हितों के लिये खतरा उत्पन्न करती है।
    • आतंकवाद: भारत विरोधी भावना और मालदीव का इस्लामी मूल्यों पर ध्यान केंद्रित करना आतंकवाद के बारे में चिंताएँ बढ़ाता है, जिससे क्षेत्र में अस्थिरता उत्पन्न हो सकती है एवं भारत की सुरक्षा को खतरा हो सकता है।

    निष्कर्ष:

    बढ़ते चीनी प्रभाव और भारत विरोधी भावना के बीच, क्षेत्रीय स्थिरता तथा आपसी समृद्धि के लिये भारत-मालदीव संबंधों को मज़बूत करना आवश्यक है। सामंजस्यपूर्ण साझेदारी से आर्थिक संवृद्धि, सुरक्षा और सांस्कृतिक संबंधों को लाभ होगा, जिससे दोनों देशों के लिये अधिक लचीला एवं समृद्ध भविष्य को बढ़ावा मिलेगा।

  • 2024

    आतंकवाद वैश्विक शांति और सुरक्षा के लिये एक बड़ा खतरा बन गया है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस खतरे को संबोधित करने और कम करने में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आतंकवाद-निरोधी समिति (CTC) तथा इससे संबंधित निकायों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन कीजिये। (उत्तर 250 शब्दों में दीजिये)

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • विश्वसनीय स्रोतों का उपयोग करते हुए आतंकवाद के खतरे को परिभाषित कीजिये और संयुक्त राष्ट्र आतंकवाद-निरोधी समिति (UNCTC) की भूमिका को रेखांकित कीजिये।
    • आतंकवाद के प्रभाव, UNCTC की भूमिका और प्रभावशीलता, उसके सामने आने वाली चुनौतियों तथा सुधार के सुझावों का उल्लेख कीजिये।
    • भविष्योन्मुख दृष्टिकोण के साथ निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    वैश्विक आतंकवाद सूचकांक वर्ष 2024 में वैश्विक स्तर पर आतंकवाद से संबंधित मौतों में 22% की वृद्धि दर्ज की गई है, जो वर्ष 2017 के पश्चात् से सबसे अधिक है। इसके जवाब में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आतंकवाद-निरोधी समिति (CTC) इस मुद्दे से निपटने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

    मुख्य भाग

    वैश्विक शांति और सुरक्षा के लिये आतंकवाद का खतरा: 

    • राज्य संप्रभुता का क्षरण: अफगानिस्तान और सोमालिया में कमज़ोर सरकारें तालिबान तथा अल-शबाब को उत्थान का मौका देती हैं।
    • आर्थिक प्रभाव: 9/11 के हमलों से अमेरिका को 40 बिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान हुआ, जबकि वर्ष 2015 के पेरिस हमलों से यूरोपीय पर्यटन को नुकसान पहुँचा।
    • मानवीय संकट: ISIS तथा सीरिया और इराक में संघर्षों के कारण बड़े शरणार्थी संकट उत्पन्न हो गए हैं, जिससे मेज़बान देशों पर दबाव बढ़ गया है।
    • राजनीतिक तनाव: आतंकवाद भू-राजनीतिक संघर्षों को बढाता है, विशेष रूप से भारत और पाकिस्तान के बीच, जिसका उदाहरण वर्ष 2019 का पुलवामा हमला है।

    UNSC-CTC और इसकी प्रभावशीलता:

    • 11 सितंबर के हमलों के बाद आतंकवाद से निपटने के लिये प्रस्ताव 1373 द्वारा स्थापित।
    • यह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 1373 और 1540 जैसे विधिक ढाँचों के कार्यान्वयन को सुगम बनाता है, जिसके अंतर्गत सदस्य देशों को आतंकवाद से लड़ने तथा हथियारों के प्रसार को रोकने की आवश्यकता होती है। 
    • यह क्षमता निर्माण पहल को बढ़ावा देता है, खुफिया जानकारी साझा करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देता है तथा आधुनिक रणनीतियों के साथ साइबर आतंकवाद और सोशल मीडिया रिक्रूटमेंट जैसी चुनौतियों का समाधान करता है।

    UNCTC की चुनौतियाँ:

    • सार्वभौमिक परिभाषा का अभाव: आतंकवाद की असंगत परिभाषाओं के कारण अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भिन्न-भिन्न प्रतिक्रियाएँ सामने आती हैं।
    • प्रवर्तन संबंधी मुद्दे: सोमालिया जैसे स्थानों में आतंकवाद-निरोधी प्रयास अक्सर विभिन्न भौतिक और शासन-संबंधी बाधाओं के कारण अप्रभावी हो जाते हैं।
    • राजनीतिक जटिलताएँ: वीटो शक्ति, विशेष रूप से चीन की ओर से, आतंकवादी घोषित करने पर आम सहमति बनाने में बाधा उत्पन्न कर सकती है।
    • उभरते खतरे: साइबर आतंकवाद और इससे होने वाले हमले जैसी नई चुनौतियाँ तेज़ी से उभर रही हैं।

    सुधार हेतु सुझाव:

    • आतंकवाद-निरोधी बाध्यकारी ढाँचे का निर्माण करना।
    • वित्तपोषण और आवागमन हेतु वास्तविक समय पर सूचना साझाकरण को बढ़ावा देना।
    • कट्टरपंथ को रोकने के लिये स्थानीय समुदायों के साथ सहयोग करना।
    • विकासशील देशों के लिये वित्तीय और तकनीकी सहायता बढ़ाना।

    निष्कर्ष: 

    CTC ने आतंकवाद का सामना करने में प्रगति की है, एक सक्रिय दृष्टिकोण महत्त्वपूर्ण है। विधिक ढाँचे को मज़बूत करना, खुफिया जानकारी साझा करना और सामुदायिक पहल को बढ़ावा देना अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को उभरते खतरों से निपटने तथा वैश्विक सुरक्षा को मज़बूत करने के लिये बेहतर ढंग से तैयार करेगा।

  • 2024

    “पश्चिम भारत को, चीन की आपूर्ति शृंखला पर निर्भरता कम करने के लिये एक विकल्प के रूप में और चीन के राजनीतिक और आर्थिक प्रभुत्व का मुकाबला करने के लिये रणनीतिक सहयोगी के रूप में बढ़ावा दे रहा है।” उदाहरणों के साथ इस कथन की व्याख्या कीजिये। (उत्तर 150 शब्दों में दीजिये)

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • चीन के बढ़ते वैश्विक प्रभाव को संक्षेप में बताइये।
    • वर्तमान बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था में होने वाले रणनीतिक बदलावों को उदाहरण सहित बताइये। 
    • तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये। 

    परिचय:

    चीन के बढ़ते आर्थिक प्रभुत्व और मज़बूत विस्तारवादी रणनीतियों की प्रतिक्रिया में पश्चिमी देश ‘चीन+1' रणनीति को महत्त्व देने के साथ इसको प्रतिसंतुलित करने में भारत को प्रमुख विकल्प के रूप में देख रहे हैं।

    मुख्य भाग:

    यह रणनीतिक बदलाव निम्नलिखित क्षेत्रों में देखे जा सकते हैं:

    • चीन की आपूर्ति शृंखला पर निर्भरता में कमी लाना: 
      • रणनीतिक और उभरती प्रौद्योगिकियों के संबंध में ‘अमेरिका-भारत’ पहल का उद्देश्य चीन की प्रौद्योगिकी पर निर्भरता कम करने के क्रम में सेमीकंडक्टर उपकरण, AI, रक्षा सहयोग आदि जैसे क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देना है।
      • भारत एवं यूरोपीय संघ की मुक्त व्यापार समझौता वार्ता का उद्देश्य आर्थिक संबंधों को मज़बूत करने के साथ टैरिफ को कम करना है।
      • एप्पल और सैमसंग जैसी कंपनियों द्वारा भारत में अपना विस्तार करने से न केवल चीन की आपूर्ति शृंखलाओं पर निर्भरता में कमी आ रही है बल्कि इन कंपनियों को भारत के उपभोक्ता बाज़ार का लाभ मिल रहा है। 
    • चीन के प्रभुत्व के विरुद्ध रणनीतिक सहयोगी के रूप में भारत: 
      • प्रस्तावित भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे (IMEC) को यूरेशिया में चीन की BRI रणनीति को प्रतिसंतुलित करने के रूप में देखा जा रहा है, जिससे इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते आर्थिक एवं राजनीतिक प्रभाव को संतुलित करने में मदद मिलेगी।
      • चतुर्भुज सुरक्षा संवाद (QUAD) सुरक्षा, आर्थिक और पर्यावरणीय सहयोग के माध्यम से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता बढ़ाने पर केंद्रित है।
      • अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ भारत की 2+2 वार्ता तथा मालाबार तथा RIMPAC जैसे संयुक्त अभ्यास इन देशों के बीच अंतर-संचालन एवं सामूहिक सुरक्षा को बढ़ाने पर केंद्रित हैं।
      • अमेरिका के नेतृत्व वाला हिंद-प्रशांत आर्थिक ढाँचा (IPEF) आर्थिक चुनौतियों से निपटने एवं व्यापार सहयोग के माध्यम से चीन के प्रभाव को प्रतिसंतुलित करने के क्रम में भारत का सहयोगी है।

    निष्कर्ष:

    निकट भविष्य में भारत के पास वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में एक प्रमुख हितधारक के रूप में उभरने की क्षमता है लेकिन इस क्षमता का पूरा लाभ प्राप्त करने हेतु इसे बुनियादी एवं नियामक ढाँचे संबंधी आंतरिक चुनौतियों का समाधान करना होगा। अन्य देशों के साथ साझेदारी का लाभ उठाकर भारत न केवल अपनी अर्थव्यवस्था को मज़बूत कर सकता है बल्कि एक अधिक संतुलित विश्व व्यवस्था में भी योगदान दे सकता है।

  • 2024

    प्रश्न 20 सोशल मीडिया एवं 'को गोपित' (एन्क्रिप्टिंग) संदेश सेवाएँ गंभीर सुरक्षा चुनौती हैं। सोशल मीडिया के सुरक्षा निहितार्थों को संबोधित करते हुए विभिन्न स्तरों पर क्या उपाय अपनाए गए हैं? इस समस्या को संबोधित करते हुए अन्य किन्हीं उपायों का भी सुझाव दीजिये।

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • सोशल मीडिया के प्रसार पर प्रकाश डालते हुए उत्तर आरंभ कीजिये।
    • सोशल मीडिया एवं 'को गोपित' (एन्क्रिप्टिंग) संदेश सेवाओं से संबंधित सुरक्षा चुनौतियों पर प्रकाश डालिये। 
    • सोशल मीडिया से संबंधित सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिये वर्तमान प्रयासों का उल्लेख कीजिये।
    • इससे संबंधित समस्याओं के समाधान हेतु अन्य उपाय सुझाइये।
    • तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये। 

    परिचय: 

    सोशल मीडिया एवं 'को गोपित' (एन्क्रिप्टिंग) संदेश सेवाओं के प्रसार ने भारत में संचार के क्षेत्र में क्रांति ला दी है।

    • ये प्लेटफॉर्म्स सूचना साझाकरण एवं कनेक्टिविटी के प्रमुख साधन बन गए हैं, किंतु ये राष्ट्रीय सुरक्षा, लोक सुरक्षा एवं सामाजिक सद्भाव के लिये जटिल जोखिम भी प्रस्तुत करते हैं।
    • भ्रामक सूचनाओं के प्रसार से लेकर आपराधिक गतिविधियों को बढ़ावा देने तक, ये डिजिटल प्लेटफॉर्म्स सुरक्षा चिंताओं के लिये एक नया क्षेत्र बनकर उभरे हैं।

    मुख्य भाग: 

    सोशल मीडिया एवं 'को गोपित' (एन्क्रिप्टिंग) संदेश सेवाओं से संबंधित सुरक्षा चुनौतियाँ: 

    • भ्रामक सूचना: सोशल मीडिया के माध्यम से भ्रामक सूचनाओं का प्रसार किया जाता है, जो कि आराजकता को बढ़ता है। (वर्ष 2022 से जारी रूस यूक्रेन युद्ध में, भ्रामक सूचनाओं से जुड़े प्लेटफॉर्म्स का व्यापक प्रसार देखने को मिला)।
    • अतिवाद: एन्क्रिप्टेड ऐप्स के माध्यम से अतिवादी संगठन भर्ती करते हैं। (टेलीग्राम पर ISIS की गतिविधियाँ इसे सिद्ध करती हैं)
    • साइबर अपराध: प्लेटफॉर्म्स स्कैम्स, आइडेंटिटी थेफ्ट को सक्षम करते हैं। (सेलिब्रिटियों की छवियों का प्रयोग कर ठगी या भ्रामकता का प्रसार किया जाता है)।
    • डेटा गोपनीयता: उपयोगकर्त्ताओं के डेटा का दुरुपयोग, एक चिंता का विषय रहा है। (2018 कैम्ब्रिज एनालिटिका स्कैम)
    • डिजिटल युद्ध: दुष्प्रचार और राज्य हित के लिये उपयोग किये जाने वाले प्लेटफॉर्म्स। (रूस द्वारा वर्ष 2020 के अमेरिकी चुनाव को डिजिटल माध्यम से प्रभावित किया गया)

    सोशल मीडिया से संबंधित सुरक्षा चुनौतियों को समबोधित करने हेतु उपाय:

    • IT अधिनियम 2000: ऑनलाइन संचार को नियंत्रित करता है; धारा 69A सुरक्षा के लिये सामग्री को अवरुद्ध करने में सक्षम बनाती है और धारा 79 (1) मध्यस्थों को सशर्त प्रतिरक्षा प्रदान करती है। (भारत ने वर्ष 2020 में 59 चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगा दिया)
    • IT नियम 2021: इसके माध्यम से कंटेंट मॉडरेशन और यूज़र प्राइवेसी नोटिफिकेशन को अनिवार्य बनाया गया है। (ट्विटर को वर्ष 2021 में अनुपालन संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ा)
    • शिकायत अधिकारी: प्लेटफॉर्म्स को शिकायतों के प्रबंधन हेतु अधिकारियों की नियुक्ति करनी चाहिये। (मेटा ने वर्ष 2022 में स्पूर्ति प्रिया को नियुक्त किया)
    • तथ्य-जाँच: प्लेटफॉर्म्स को सरकार द्वारा चिह्नित भ्रामक कंटेंट को हटाना की आवश्यता है। (वर्ष 2023 के नियम सुप्रीम कोर्ट की समीक्षा के अधीन)

    अन्य उपाय: 

    निष्कर्ष: 

    तकनीकी समाधानों, डिजिटल साक्षरता पहलों और हितधारकों के बीच सहयोगात्मक प्रयासों को एकीकृत कर, भारत एक सुरक्षित ऑनलाइन वातावरण का निर्माण कर सकता है। अंततः लक्ष्य राष्ट्रीय सुरक्षा हितों और व्यक्तिगत गोपनीयता अधिकारों के बीच एक कमज़ोर संतुलन का निर्माण करना है, जिससे सभी नागरिकों के लिये एक सुरक्षित तथा जीवंत डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र सुनिश्चित हो सके।

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